चांद पर क्यों नहीं मिटते इंसानों के पैरों के निशान? बड़ा गहरा है रहस्य?




ये तो सब जानते हैं कि चांद पर जाने वाले पहले व्यक्ति नील आर्मस्ट्रांग हैं, जबकि अंतरिक्ष यात्री यूजीन सेरनन आखिरी व्यक्ति थे, जिन्होंने साल 1972 में चंद्रमा की सतह पर अपने कदमों के निशान छोड़े थे। इस बात को अब 46 साल बीत चुके हैं, लेकिन उनके पैरों के निशान आज भी चांद की धरती पर मौजूद होंगे। इसके पीछे एक गहरा रहस्य छुपा हुआ है। चांद पृथ्वी का इकलौता प्राकृतिक ग्रह है। इसके निर्माण के पीछे भी एक अनोखी कहानी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आज से करीब 450 करोड़ साल पहले एक उल्का पिंड पृथ्वी से टकराया था, जिसकी वजह से पृथ्वी का कुछ हिस्सा टूट कर अलग हो गया और वही हिस्सा बाद में जाकर चांद बना। 


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वैज्ञानिकों के मुताबिक, चंद्रमा का सिर्फ 59 फीसदी हिस्सा ही पृथ्वी से दिखता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि अगर चांद अंतरिक्ष से गायब हो जाए तो पृथ्वी पर दिन मात्र छह घंटे का रह जाएगा। आपको यह भी जानकर हैरानी होगी कि चांद के रोशनी वाले हिस्से का तापमान 180 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जबकि अंधेरे भाग का तापमान -153 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।



बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्क रॉबिन्सन बताते हैं, 'चंद्रमा मिट्टी की चट्टानों और धूल की एक परत से ढंका हुआ है। साथ ही मिट्टी के कण भी इस परत में मिश्रित होते हैं, इसलिए चांद की सतह पर से पैर के हट जाने के बाद भी पैरों के निशान बने रहते हैं.मार्क रॉबिन्सन का कहना है कि चंद्रमा पर मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों के पैर के निशान लाखों सालों तक वैसे ही रहेंगे, क्योंकि चांद पर वायुमंडल नहीं है




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